हिन्दुस्तानी इंक़लाब के सबसे बड़े प्रतीक शहीदे आज़म भगत सिंह की फाँसी के बाद ७३ वर्ष और उस आज़ादी के बाद 61 वर्ष का समय बीत चुका है, जो हमें कांग्रेस के नेतृत्व में मिली.
भगत सिंह ने बार बार यह चेतावनी दी थी कि कांग्रेस के रास्ते पर चलकर मिलने वाली आज़ादी 10 फीसदी उपर के लोगों की आज़ादी होगी, पूंजीपतियों – साहूकारों की आज़ादी होगी; देश के 90 फीसदी मजदूरों – किसानों की जिंदगी को शोषण और लूट से आज़ादी नहीं मिलेगी
इन 61 वर्षों के एक एक दिन ने उस नौजवान की चेतावनी को सच साबित किया है. लुटेरों की चमड़ी का रंग बदल गया है, पर लूट बंद होना तो दूर बल्कि और तेज़ होती गयी है.
आधी सदी के कुछ अधिक के भीतर देशी पूंजीवादी सत्ता की गोलिओं ने उससे अधिक जनता का खून बहाया है, जितना दो सौ वर्षों के दौरान अँग्रेज़ों ने बहाया था. कहने को जनतंत्र है, पर अन्यायी सत्ता के विरूद्ध उठने वाली हर आवाज को, हर आन्दोलन को कुचल देने के लिए न तो नए नए काले कानूनों की कमी है, न जेलों, पुलिस और फौज की. प्रतिदिन देश के किसी न किसी कोने में छात्रों, मजदूरों या किसानों पर गोलियां चल रही हैं
देश विदेशी क़र्ज़ से लदा है. एक ब्रिटिश साम्राज्यवाद की जगह दर्जनों विदेशी डाकू देशी धन्नासेठों के साथ मिलकर भारत की जनता की मेहनत को और हमारी इस सर्वगुणसम्पन्न धरती को लूट रहे हैं. ऊपर के करीब सौ बड़े पूंजीपति घरानों की पूंजी में दोगुने चौगुने की नहीं बल्कि दो सौ गुने से लेकर चार सौ गुने तक की बढौतरी हुई है जबकि दूसरी ओर आधी आबादी को शिक्षा और दवा इलाज़ तो दूर, भरपेट भोजन भी मयस्सर नहीं है. 1947 में देश को जो अधूरी और विकलांग आजादी मिली, उसका पूरा फायदा सिर्फ़ ऊपर की बीस फीसदी धनिक आबादी को ही मिला है जो पूंजीपतियों की चाकरी बजाती है और साम्राज्यवादिओं के तलवे चाटने के लिए तैयार है.
देश के नौजवानों ने बहुत इंतज़ार कर लिया. बहुत दिनों तक घुट घुट कर जी लिया. इस या उस चुनावबाज़ पार्टी से बदलाव की उमीदें पालकर बहुत धोखा खा लिया अब उन्हें सोचना ही होगा की अब और कितना छले जायेंगे? अब और कितना बर्दाशत करेंगे? दुनियादारी के भंवरजाल में कब तक फंसे रहेंगे? कितने दिन तक चुनौतियों से आँख चुरायेंगे? उन्हें भगत सिंह के संदेश को सुनना होगा. नई क्रांति की राह पर चलने के लिए वक्त आवाज़ दे रहा है. उसे सुनना होगा.
यहाँ भगत सिंह के अनेक लेखों, पत्रों और बयानों से चुने हुए उद्धरण दिए जा रहे हैं जो बताते हैं कि भगत सिंह और उनके साथी किस तरह की क्रांति लाना चाहते थे और उनके सामने आजाद भारत का कैसा नक्शा था. ये उद्धरण उन कूपमंडूकतापूर्ण और दकियानृसी विचारों पर चोट करते हैं. ये आह्वान करते हैं उठ खड़े होने के लिए और क्रांति की राह पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए..................
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