**नवउदारवाद , राज्य और काले कानून**
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हिन्दुस्तान में अपने हकों के लिए राज्य और कानून के विरुद्ध बात करना देशद्रोह घोषित हो चुका है , जो व्यक्ति / संगठन राज्य और राज्य की नीतियों की हाँ में हाँ नहीं मिलाएगा उसे देशद्रोही करार देकर सलाखों के पीछे डाल दिया जायगा / बिनायक सैन की गिरफ़्तारी और उम्रकैद से इस बात का संकेत मिल गया है / दरअसल सरकार द्वारा बनाई गई नवउदारवादी नीतियों से उपजे असंतोष को सरकारें खतरा मानकर चल रही हैं और उन नीतियों को लागू करवाने के लिए सरकार द्वारा कुछ कानून बना दिए गए हैं , जो ना सिर्फ बोलने की स्वतंत्रता को छीन रहे हैं बल्कि जीवन को भी छीन रहे हैं / उत्तर - पूर्व , आदिवासी इलाकों , मिजोरम , मणिपुर , नागालैंड और जम्मू कश्मीर में इन काले कानूनों का क्रूरतम चेहरा दिख रहा है / आदिवासियों को जल , जंगल और जमीन से ना सिर्फ बेदखल किया जा रहा है बल्कि उनके घरों को जबरन आग के हवाले कर दिया जाता है और घरों के बाहर हरदम पैरा मिलिटरी फ़ोर्स लोगों को घरों में नज़रबंद रखती है , महिलाओं से बलात्कार करती है तो सविधान और कानून भी अपाहिज हो जाता है और इसका विरोध करने पर शुरू हो जाता है पुलिस और फौज का जुल्म / तब देश के विरुद्ध युद्ध चलाने का आरोप लगाकर ना सिर्फ देशद्रोही घोषित कर दिया जाता है बल्कि फौज द्वारा श़क के आधार पर किसी को भी गोलियां से भून दिया जाता है / सशस्त्र सेना विशेष शक्तियां अधिनियम (एएफएसपीए) जिसकी धारा 4 सेना को बिना वारंट तलाशी, गिरफ्तारी और गोली मारने की छूट देती है और किसी भी सैन्य अधिकारी को अपने फैसले को लेकर सजा, मुकदमा या फिर किसी अन्य प्रकार की कानूनी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ता है। यानी फौज को अपने नागरिकों को गोली मारने का अधिकार हैं। आखिर एएफएसपीए लागू रखने का समर्थन करने वाले चाहते क्या हैं? क्या वह सारी दुनिया को यह दिखाना चाहते हैं कि हम अपने नागरिकों को बन्दूक के दम पर अपने साथ रखते हैं? केवल कश्मीर ही नहीं पूर्वोत्तर में भी यह कानून जुल्म ढा रहा है। जो लोग इस कानून का समर्थन कर रहे हैं वह भविष्य के लिए लोकतंत्र को खतरे में डाल रहे हैं। सेना सीमा पर तैनाती के लिए होती है न कि नागरिकों के सिर कुचलने के लिए। सेना को नागरिकों की हत्या का अधिकार नहीं सौंपा जा सकता है।ये राज्य और उसके काले कानून का क्रूरतम चेहरा है , जो जनता के आंदोलनों को कुचलने की आज़ादी देता है , जिसकी जड़ हैं मनमोहन , चितंबरम और आहलूवालिए का भूमंडलीयकरण / वो भूमंडलीयकरण जो देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई को गहरा कर रहा है , जो बेरोज़गारी को बढ़ा रहा है , प्राकृतिक संसाधनों की विदेशी कम्पनियों द्वारा खुली लूट करवाकर बहुराष्ट्रीय निगमों की सेवा में लगा है , भ्रष्टाचार , महंगाई का जन्मदाता है / किसानो की आत्महत्याओं का जिम्मेदार है / शिक्षा , स्वास्थ्य से जनता को दूर कर रहा है / संकीर्णता , नफरत , स्वार्थ , बेचारगी , हिंसा , असंतोष को पैदा करता है ये भूमंडलीयकरण / राज्य और उसे संचालित करने वाली सरकारें समझें या ना समझें , हम समझते हैं कि ये मुल्क हमारा है , इस मुल्क के लोग हमारे अपने हैं , उनके हित हमारे हित हैं / पर देश की सरकार के हित उनसे अलग हैं / क्यूंकि उन्होंने तो विधि द्वारा स्थापित संविधान के प्रति वफ़ादारी की कसम खाई है , लोगों के हितों के प्रति वफादारी की नहीं / तभी तो 1 लाख 76 हजार करोड़ खाने वालों और उनका मौन समर्थन करने वालों की देशभक्ति पर किसी को कोई परन्तु नहीं / अपने हकों के लिए लड़ने वालों पर है / सो एक मजबूत जनांदोलन ही उनके हकों को सुरक्षित कर सकता है /
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